गुलज़ार- उनकी बातों में, और शब्दों में जो सादगी है, जिसे हम सब तराशते रह जाते है और अनदेखा भी कर देते है क्योंकी आस पास की चमक इतनी तेज है। कुछ सच्चे और सीधे 'लब्ज़' की तलाश में, मैं निकली हूँ। छोटी-छोटी बातों में ख़ुशी नजर आने के लिए अपनी आँखों और सोच का दायरा बढ़ाना जरूरी हो गया है। हमारी 'जिंदगी' की परिभाषा भी कितनी सुलझी हुई और उसी वक़्त कितनी गहरी होती है। सभी से तो हम बात नहीं कर पाते है, मगर क्या ख़ामोशी की जुबान समझने वाले लोग, सिर्फ अब उंगलियों पर गिनने की तादाद में रह गए है? ऐसे लोगों से हमारी मुलाकातें कम क्यों हो गयी है? क्या उन्हें अपनी ख़ामोशी से इतना प्यार होता है, की वो किसी और को अपने इर्द- गिर्द तो आने देते है, पर अपने अंदर की गहराइयों में झाँकने का मौका नहीं देते? क्या इसीलिए, 'कविता' का जन्म हुआ, जो रूह की आवाज को जुबान पर ला देती हैं?!
I must be suffering from mid-week crisis! Why else would I feel such a load of emotions within me? I am tempted to dance. But just the thought of putting up a performance for a friend's wedding has me all freaked out. I have never danced in front of an audience. I love my solitude dancing. Something that remains within myself. If I must ponder upon a friend's advice of loosening up a bit, then I suppose this dialogue makes sense. Just the thought of unrestrained dancing can stress me so much. It's time to stop myself from wallowing into misery. Too much thinking ruins the possibilities of finding joy!
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