कभी सोचा ना था के यह मेरे साथ भी होगा। पर मैं तो अक्सर बहुत कुछ सोचती नहीं और वह होते रहता हैं। जब तक उसका एहसास हो, वह बात और समा गुजर चुके होते है। क्या यह मेरी कमजोरी है या मेरा अँधा विश्वास लोगों पर, चीज़ों पर, वक़्त पर? शायद बहुत ज्यादा मासूमियत से बर्ताव करने की आदत हो चुकी है मुझे, इसलिए ऐसे जब कभी मन को ठेस पहुँचती है तो सहा नहीं जाता। खैर, अब ये उम्र ही क्या और ये ज़िंदगी ही क्या जिसमे गिले- शिक़वे ना हो?
अपने आप में रहने का कोई मकसद नहीं ना ही खुद को जलाकर रौशनी फैलाने की चाह रखने की उम्मीद रखे। दुनिया बड़ी जालिम है जनाब, कही हम यहाँ आकर अपने आप को ही ना मिटा दें।
बस इतना याद रखें की ज़िंदगी बहुत छोटी है, जो गुजर गयी वह कल की बात थी। आनेवाले सूरज को अपनाओ, इतने से तो लम्हें हात लगें है हमारे।
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