I have been reading a lot of Hindi Poetry lately. My interest sparked after reading a few poems in a book diary. Thereafter, I got hold of hindi magazines like Hans, Dnyanodaya, Pakshadhar, Bahuvachan, Vagarth, Pahal, Udbhawana, Kathadesh, Aahwaan and poetry books on Agyey, Raghuvir Sahay, Chandrakant Devtale. The other day, I was reading an article by Gulzar in a sunday supplement. Therein, he mentioned of what drives him to write poetry. I got influenced by his words and promptly took to penning down mine, Since, I've been reading a lot of poetry these days, my first two poems took shape quite easily. I'm posting a poem here that's essentially memories of my father and me from my childhood. This is my first attempt at hindi poetry.
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बचपन की यादें
किताबों में खो
जाना
पाया विरासत में उनसे
मैंने।
खो कर भी
सचेत रहना
जाना उन्हें देखकर मैंने।
बचपन में शेर
की आवाज
निकालकर खूब हँसाते
मुझे,
फिर हवाई जहाज
की
कहानियों में ले
जाते मुझे।
स्कूटर पर जाते
हम दूर
शहर के बाहर,
फिर सड़क के
किनारे रूककर
दिलवाते गुलमोहर के फूल
मुझे।
गन्ने का रस
पीतें
हर गर्मियों के इतवार
हम।
फिर शाम की
सैर के बाद
खाते गरमा-गरम
जलेबियाँ हम।
उनके साथ रोज
सुबह
रेल्वे स्टेशन तक की
राह,
कट जाती इतनी
जल्दी
मानो वक्त की
सुई तेज भागती।
धीर- गंभीर आवाज में
उनकी
जब सुनती कोई कविता
मै,
मन के पटल
पर हमेशा के
लिए
हो जाती रेखांकित
मेरे।
कभी उनका मनपसंद
गाना
टि.व्ही. पर सुनते,
तो ऊँचे स्वरों
में हम दोनों
हमेशा गाने का
लुफ्त उठाते।
ऐसी कितनी यादें है
जो मन के
छोटे-छोटे कमरों
में है बसी।
कभी आँखें मूँद लूँ
सुकून से,
तो झट मेरे
सामने हो खड़ी
उठती।
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बचपन की यादें बिलकुल सरलता से रेखांकीत की हैं.
ReplyDeleteलाजवाब.
जी शुक्रिया जनाब। :)
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