रिमझिम गिरती बूंदो को खिड़की से देखते हुए आज सुबह की चाय का मजा दुगुना हो गया। Spotify पर भी गानों की महफ़िल जमी थी और मैं ना जाने कितने बीते हुए मौसम याद कर चुकी उनको सुनते हुए। क्या रिश्ता है बारिश का हम सभी से जो हम उसे इतना रूमानी कर देते हैं, हमारी बातों में, गानों में और यादों में भी? जैसे मुझे लगता है चाय के साथ भी हम बहुत ज्यादा गुफ्तगू कर लेते है। हर मौसम चाय का स्वाद अच्छा ही लगता हैं। चाहे गर्मियों की शामें हो, या जाड़ों की सुबहें या हो किसी गरजते हुए बारिश की दोपहर।
हर शहर की बारिश का नजारा और मंज़र अलग, उनसे जुडी अनगिनत यादें और उन यादों में बसते हुए लोग। राह चलते मिले हुए चेहरों की भीड़ भी बारिशों में याद रह जाती। मुंबई की धुआंदार बारिश में कई बार बंद पड़ी ट्रेन में बैठे हुए जो निराशा होती थी वह शायद ही रास्ते पर चलते हुए ना महसूस हुयी हो। मरीन ड्राइव पर समंदर की ऊँची लहरें को देख ठण्ड से कापते हुए K Rustoms के आइसक्रीम सैंडविच का मजा ही कुछ और था। बैंगलोर की बारिश भी मुझे रूहानी लगती थी बस की खिड़की से देखते हुए। वहां पर सड़क के किनारे रूककर गाड़ियों के शोर को जब बारिश के आवाज में गुम होते हुए सुना तो एक अजीब एहसास हुआ जैसे मैं वहां थी ही नहीं। हर एक शहर का अंदाज़ अलग और उन शहरों में बारिश की चाय अलग। जैसे उसका स्वाद मौसम में था।
इसी बारिश को मैं बहुत कोसती भी हूँ, क्यूंकि मुझे इसकी आवाज पसंद नहीं, और ना ही इसका गरजना। लेकिन मुझे चाय बहुत पसंद है और इसी वजह से हाथ में गरम प्याली संग बारिश से खूब सारी बातें कर लेती हूँ। चाय को बनाने का तरीका भी इसका मजा बढ़ा देता है। अदरक का ज़ायका जब खुशबू बन महकता है तब मानो सारी दुनिया ही ख़ूबसूरत लगने लगती हैं। दो पल के लिए सिर्फ उस धीमे से भीनते हुए एहसास की कैद में रुकने को जी चाहता है। चाय को और बढ़िया बनाता है टोस्ट और खारी। हिंदी फिल्मों ने तो बारिश, चाय और पकोड़े यह मेल जमा दिया है हमारे जेहन में। शाम को भीगते हुए घर पोहोचकर जब दरवाजे पर ही भीतर से चाय के महकने का आलम होता है, तब बारिश का वह बेवजह सताना भी भूल जाते हैं। मैंने तो कितनी ग़मभरी दोपहरे को शाम की चाय में भुला दिया हैं।
कितने किस्से है जो चाय से शुरू होकर बातों में खो गए और बातें चाय में उलझकर बीती यादों में तब्दील हो गयी। यह सिलसिला तो जारी रहेगा जब तक मौसम सुहाने लगते रहेंगे।
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