इस साल की शुरुआत काफी अच्छी रही। मेरी मुलाक़ात इक नयी दोस्त से हुई। वह इतनी जल्दी प्यारी हो गयी की कभी उसके अजनबी होने का एहसास हुआ ही नहीं। हम बहुत बातें करते हैं, बहुत सारे विषयों पर - संगीत में हम दोनों को बहुत रूचि है, किताबें पढ़ने में वह दिलचस्पी रखती है और रोज सुबह मेरे लिए कॉफ़ी तक बना लाती है। बहुत मीठी, नर्म मिजाज़ की है मेरी दोस्त। उनका नाम भी उतना ही प्यारा है, बिलकुल उनके स्वाभाव की तरह। मेरी दोस्त कहलाती है - रजनीगंधा! पहली मुलाकात में उनका नाम सुनते ही मैं गाना गुनगुनाने लगी- 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे, महके यूँही जीवन में....'
ऐसा बहुत काम बार होता हैं जब हम दूसरों से किसी अवरोध बिना अपनी छोटी-बड़ी बातें बाँटते है, बगैर किसी हिचकिचाहट। इसमें सुननेवाले इंसान के संयम को दाद देनी जरूरी है। मेरे बहुत अच्छे दोस्तों में जल्द ही रजनी शामिल हो चुकी है। यूँ तो यह कहना गलत नहीं होगा की बढ़ती उम्र के साथ हमारी दोस्तियां कम हो जाती है, उनमे से बहुत तो ख़त्म तक होती है। हम बस जिंदगी की रफ़्तार में भागते हुये उन्हें भुला देते हैं। किसी फुरसत भरे पल शायद वह हमें याद भी आती है, पर हम बीतें हुये कल में उन्हें छोड़ आगे निकलते हैं। कच्ची- पक्की दोनों दोस्तियां हवा के रुख के साथ बिखर जाती है। शायद तस्वीरों में हम उन्हें वापिस पल- दो पल के लिए देखते है। तब ना जाने बितायें हुये कितने क्षण आँखों से फिर ओझल हो बुझते है, हमेशा के लिए।
कहते है ना, हमारी दुनिया में सुननेवाले कम तादाद में पायें जाते है। मेरी दोस्त ने आज इक बड़े गहरे सच से मुझे रूबरू कराया। उन्होंने कहा - जो भी हमारे दिल में हो, हमें वह कर ही लेना चाहिए बिना किसी इंतज़ार, के कोई हमारे लिए कुछ करे। बात मुझे समझ आ गयी, लेकिन उसपे अमल करना उतना ही मुश्किल है। शायद मैं कभी किसी दिन इतनी हिम्मत जुटा पाऊं के अपनी दिल की बातें बिना हिचकिचाहट पेश कर पाऊं, उन सभी लोगोसे जो बहुत मायने रखते है मेरी ज़िन्दगी में। मेरे इतने करीब इतनी अच्छी दोस्त पाकर बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ। यूँही हमारी दोस्ती बरकरार रहे और हम ढेरो बातें करते रहे।
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