एक सपने सा लगता है वो दिन। पहाड़ों में घूमने का मेरा हमेशा से ही अरमान रहा था। वो ऊँचे देवदार के वृक्ष, पाईन के कोनो को ज़मींन पर पाना और सफ़ेद रंग का हर तरफ दिखना। ऐसे दृश्य देखकर मुझे अक्सर हिंदी फिल्मों के गाने याद आते है। इतना फिल्मों से लगाव नहीं है जितना गानों से है, खासकर वो गानें जो मूलतः कविता के रूप में लिखी गई थी और उसे संगीत का साज चढ़ाकर फिल्मों में पेश किया गया। मेरे पिताजी ने उनके शिमला के वास्तव दौरान की कई सारी Black & White तस्वीरें आज तक सहेज कर रखी है। जब कभी मेरा मन होता है, मैं उन्हें देख लेती हूँ। रंगीन तस्वीरों की भी अलग ही बात होती है। रंग जैसे आज का दौर दिखलाती है, वहीं B&W रंगीन शीशों को पार कर गुजरे जमाने में ले जाती है। मानो हम इतिहास में यात्रा कर रहे हों। मसुरी, देहरादून, अल्मोड़ा - ये सारी जगहें बचपन में किसी जादुई नगरी सी लगती थी। आज भी लगती है, किंतु बचपन में हमारी कल्पनाशक्ति जैसे होती है, जिस निरागस भाव से बच्चें दुनिया निहारते है, वो नज़रिया बड़े होकर लुप्त हो जाता हैं। अपनी मासूमियत को जीवित रखने का हम सब प्रयास तो कर ही सकते है।
इस समय, खिड़की से बाहर नजर डालने पर पीले रंग के लिली के फूल खिलते मुझे दिख रहे हैं। मानो आसमान की तरफ अपना चेहरा उठाते हुए मुझसे हँस कर कुछ बात करने की कोशिश कर रहे हो। ऐसी प्रसन्नता केवल प्रकृती से ही मिलती है। सच कहते है की, मनुष्य चाहें कितनी ही भागादौड़ी कर लें, उसे सुकून विलासिता में नहीं बल्कि प्रकृती के वास में मिलता है। गर्मियों के दिनों में आमतौर पर दिखने वाले अमलतास और गुलमोहर जैसे आँखों को लुभाने वाले वृक्ष भी बहुत कम हो गए है। किसी जमाने में, मेरी नानी के घर से होने वाले रास्ते पर दोतर्फा गुलमोहर के पेड़ हुआ करते थे। तब उन्हें मिलने की ख़ुशी से ही गर्मी का एहसास तक नहीं होता था। बस की खिड़की से बाहर निकलकर उन फूलों को छूने का मन करता था। सोचती थी, वो पल ऐसे ही हर साल मिला करेंगे। अब तो वहाँ हाईवे बन चूका है। पेड़ तो रहे नहीं, रास्तें भी अनजान हो गए है। ना वो सड़कें रही, जिसपर धूल उड़ाते बस भागती थी, ना वो गाँव की चौखट जिसे पार कर नानी के घर जाने की जल्दी होती, मन तो पहले ही नानी की गोद में जाकर उछलने लगता था। अब तो वह बस स्टेशन भी एक हाई- फाई टर्मिनल में परिवर्तित हो चूका है।
खैर ये तो सारी बीती बातें हो चुकी अब। ठंडी हवाएँ, झूमते पेड़ और लहराते खेत कालवश हो चुके। अब तो केवल पुरानी तस्वीरें देखकर ही मन भर लेते है और मन ही मन गुनगुनाते है- दिल ढूँढता है फिर वही...
Comments
Post a Comment